कविता आज फिर कैसे लिखूँ मै,
दूर तुमसे हो गया हूँ,
कल्पना ले सो गया हूँ,
प्रेम की गीता से अब,
तुम ही कहो क्या फिर सीखूं मै,
कविता आज फिर कैसे लिखूँ मैं,
पारदर्शी हो चुका अब,
रंग बाँकी ना बचा अब,
ग़म की झाँकी सा बना हूँ,
कैसे ऋतु बसंती सा दिखूँ मै,
कविता आज फिर कैसे लिखूँ मैं,
तुम वहाँ हो हम यहाँ हैं,
साथ गुज़रे पल कहाँ हैं ,
मोल ना कुछ भावना का,
बे मोल ही अब तो बिकूँ मै,
कविता आज फिर कैसे लिखूँ मै।
bahut khoob likha hai
जवाब देंहटाएंपरी जी ...आपको पसंद आये मेरे शब्द ...आभारी हूँ आपका .............
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