मै अरूप अचिन्ह,
मन: मृदा खिन्न,
चला करने संस्कारित जगत,
ना कोई युक्ति ना कोई जुगत,
ईमानदारी का प्रवचन,
संस्कारों की खुरचन,
मौलिकता का आवरण,
भावनायें भावप्रवण,
सत्य की कसौटी,
पुरखों की बपौती,
मन में धार्मिकता,
सोंचो की सार्थकता,
लिये कांधे पर बोझ,
ज़िदंगी जीना है रोज,
लिखना फिर मिटाना,
खानाबदोशों सा ठिकाना,
बना उदारता का प्रतीक,
दुनिया भर से लेता रहा सीख,
परम्परा रीति रिवाज़,
संस्कृति और समाज,
सीख पाया बस यही,
जिजीविषा चुकती नही,
पूर्ण अब जीवन मेरा,
साथ जो पाया तेरा,
हाय मै अब क्या करूँ,
तेरा प्यार किस कोने भरूँ,
बस रक्त सिंचित प्यार है,
तेरा बहुत आभार है,
" राजेंद्र अवस्थी कांड "
बेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंईमानदारी का प्रवचन,
जवाब देंहटाएंसंस्कारों की खुरचन,
मौलिकता का आवरण,
भावनायें भावप्रवण,
सत्य की कसौटी,
पुरखों की बपौती,
मन में धार्मिकता,
सोंचो की सार्थकता,
लिये कांधे पर बोझ,
ज़िदंगी जीना है रो......
अद्भुत .....!!
आपकी कलम को सलाम ....!!
रश्मि प्रभा जी ...आपने पढ़ा ,पसंद किया , आभार ...........
जवाब देंहटाएंहरकीरत जी ...आपके सलाम को मेरा सलाम .... कविता आपको पसंद आई इसके लिए आभार ........
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर .........
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