रे ध्वनि ,कुछ तो कहो तुम कौन हो ,
चीखती फिरती फिर इस दम किसलिए तुम मौन हो ,
रे ध्वनि ,कुछ तो कहो तुम कौन हो ,
मस्त करती मानसिकता शांत चित्त आनंन्द हो ,
अनुभूति की नव रौशनी और दिव्य परमानन्द हो
शांति की सरिता हो तुम या समुद्र का शोर हो ,
सहचरी हो जीव की या या जीव का तुम ठौर हो ...
रे ध्वनि ,कुछ तो कहो तुम कौन हो ,
गूंजती है गूँज निर्जन बाग और खलिहान में ,
ध्वनि मचलती है पवन के शोर में तूफ़ान में ,
कुछ तो कहो अब चुप न रहो अब शब्द के अवसान मे,
बोल दो मधु घोल दो तुम शब्द का सिरमौर हो,
रे ध्वनि ,कुछ तो कहो तुम कौन हो ,
कणिका तुम्ही क्षणिका तुम्ही हर शै में बसती हो तुम्ही ,
शून्य दीखता शून्य पर ब्रम्हांड भी निर् ध्वनि नहीं ,
श्वांश का उच्छ्वांस का एहसास का तुम शोर हो ...
प्राण में पनघट में ध्वनि तुम ही हो या कोई और हो ,
रे ध्वनि ,कुछ तो कहो तुम कौन हो ,
नाता हो तुम जग से जगत का ,
सूत्र हो गत से विगत का ,
आधार तुम सब कार्य का ,शिष्टाचार हो व्यवहार का ,
मौन कैसे हो कोई जब व्याप्त तुम सब ओर हो ..
रे ध्वनि ,कुछ तो कहो तुम कौन हो ,
चीखती फिरती फिर इस दम किसलिए तुम मौन हो ,
रे ध्वनि ,कुछ तो कहो तुम कौन हो ,
मस्त करती मानसिकता शांत चित्त आनंन्द हो ,
अनुभूति की नव रौशनी और दिव्य परमानन्द हो
शांति की सरिता हो तुम या समुद्र का शोर हो ,
सहचरी हो जीव की या या जीव का तुम ठौर हो ...
रे ध्वनि ,कुछ तो कहो तुम कौन हो ,
गूंजती है गूँज निर्जन बाग और खलिहान में ,
ध्वनि मचलती है पवन के शोर में तूफ़ान में ,
कुछ तो कहो अब चुप न रहो अब शब्द के अवसान मे,
बोल दो मधु घोल दो तुम शब्द का सिरमौर हो,
रे ध्वनि ,कुछ तो कहो तुम कौन हो ,
कणिका तुम्ही क्षणिका तुम्ही हर शै में बसती हो तुम्ही ,
शून्य दीखता शून्य पर ब्रम्हांड भी निर् ध्वनि नहीं ,
श्वांश का उच्छ्वांस का एहसास का तुम शोर हो ...
प्राण में पनघट में ध्वनि तुम ही हो या कोई और हो ,
रे ध्वनि ,कुछ तो कहो तुम कौन हो ,
नाता हो तुम जग से जगत का ,
सूत्र हो गत से विगत का ,
आधार तुम सब कार्य का ,शिष्टाचार हो व्यवहार का ,
मौन कैसे हो कोई जब व्याप्त तुम सब ओर हो ..
रे ध्वनि ,कुछ तो कहो तुम कौन हो ,
काबिल-ए-तारीफ़, हर कवि-लेखक का एक अपना अंदाज़ होता है,आपका भी है रचना में सरसता एवं परिपक्वता है ,पसंद आया, शुभकामनाएँ!!
जवाब देंहटाएं-निकुंज नरेन्द्र
धन्यवाद निकुंज जी ..आप सबकी आशाओं पर खरा उतरूं यदि उम्मीद है ..........
जवाब देंहटाएंकणिका तुम्ही क्षणिका तुम्ही हर शै में बसती हो तुम्ही ,
जवाब देंहटाएंशून्य दीखता शून्य पर ब्रम्हांड भी निर् ध्वनि नहीं ,
श्वांश का उच्छ्वांस का एहसास का तुम शोर हो ...
प्राण में पनघट में ध्वनि तुम ही हो या कोई और हो ,... गहन उत्कृष्ट भाव संयोजन
रश्मिप्रभा जी ... आभार ,पढ़ने और प्रतिक्रिया देने के लिए
हटाएंशब्दों का बहुत ही सुन्दर और सरल वर्णन किया गया है.....बहुत अच्छा लिखा है....
जवाब देंहटाएंआभार आपका ...
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