कल सौभाग्य से साहित्य मर्मग्य, मकेनिक्लिग्य, हमारे साहब फुरसतिया महाराज श्री अनूप शुक्ल जी से अनुभाग में ही मिलना हो गया,
कुछ देर तो मैंने सोंचा - बात करूँ के न करूँ फिर साहस बटोर कर मै उनके आगे पीछे मंडराने लगा,
इस आशा के साथ की सही मौक़ा देख कर उनसे बात कर सकूँ,
और वो मौका मुझे २६ जनवरी के इनाम की तरह मिल ही गया,
बड़ा सकुचाते हुए हमने उनको अपने ब्लॉग हरकांड.ब्लागस्पाट.कॉम के बारे में बताया,
तो बड़े निर्विकार भाव से उन्होंने हिंदिनी/फुरसतिया के बारे में हमसे कुछ सवाल किये,
उनके सवालों का जवाब मैंने बहुत नर्वासियाते हुए दिया,
तब मेरे ब्लॉग का पता नोट करते हुए वो हमसे बोले,
मै अभी तुम्हारा ब्लॉग देखता हूँ,
मुझे नहीं मालूम उन्होंने मेरा ब्लॉग देखा की नहीं,
परन्तु आज हिंदिनी/फुरसतिया पर उनका लेख "हादसे राह भूल जाएँगे" को पढ़ते समय मै इन चार लाइनों को संगृहीत करने से अपने को रोक नहीं पाया,
मै अपना सब गम भुला तो दूँ,
कोई अपना मुझे कहे तो सही,
हादसे राह भूल जाएँगे,
कोई मेरे साथ चले तो सही..
वजीर अंजुम साहब....
इन चार पंक्तियों के लिए मै मरहूम वजीर अंजुम साहब को और अपने साहब श्री अनूप शुक्ल जी को कोटिश धन्यवाद देता हूँ,
आपका
बुलबुल
राजेंद्र अवस्थी (कांड)
कुछ देर तो मैंने सोंचा - बात करूँ के न करूँ फिर साहस बटोर कर मै उनके आगे पीछे मंडराने लगा,
इस आशा के साथ की सही मौक़ा देख कर उनसे बात कर सकूँ,
और वो मौका मुझे २६ जनवरी के इनाम की तरह मिल ही गया,
बड़ा सकुचाते हुए हमने उनको अपने ब्लॉग हरकांड.ब्लागस्पाट.कॉम के बारे में बताया,
तो बड़े निर्विकार भाव से उन्होंने हिंदिनी/फुरसतिया के बारे में हमसे कुछ सवाल किये,
उनके सवालों का जवाब मैंने बहुत नर्वासियाते हुए दिया,
तब मेरे ब्लॉग का पता नोट करते हुए वो हमसे बोले,
मै अभी तुम्हारा ब्लॉग देखता हूँ,
मुझे नहीं मालूम उन्होंने मेरा ब्लॉग देखा की नहीं,
परन्तु आज हिंदिनी/फुरसतिया पर उनका लेख "हादसे राह भूल जाएँगे" को पढ़ते समय मै इन चार लाइनों को संगृहीत करने से अपने को रोक नहीं पाया,
मै अपना सब गम भुला तो दूँ,
कोई अपना मुझे कहे तो सही,
हादसे राह भूल जाएँगे,
कोई मेरे साथ चले तो सही..
वजीर अंजुम साहब....
इन चार पंक्तियों के लिए मै मरहूम वजीर अंजुम साहब को और अपने साहब श्री अनूप शुक्ल जी को कोटिश धन्यवाद देता हूँ,
आपका
बुलबुल
राजेंद्र अवस्थी (कांड)
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