बुधवार, 20 अक्तूबर 2010

गुरु गाथा....

अपने गुरू श्रीअनूप कुमार शुक्लाजी को उनके स्थानान्तरण से पूर्व सादर समर्पित करता हूँ ये रचना,


गुरुवर जब से चले गए तुम वीरानी सी छाई है,
याद आपको करते करते आँख मेरी भर आई है,
याद है बचपन के दिन हमको,
जब भी आप पढ़ाते थे,
हम पीछे से देख आपको नैन खूब मटकाते थे,
आप हमें समझाते रहते सब से बड़ी पढाई है, याद आपको........
भूले बिसरे याद है आते,
वो बचपन के संग संघाती,
धूल भरे दिन वो हुल्लड़ सब,
वो बरखा की काली राते,
वो दिन जाने कहाँ गए अब पतझड़ में अमराई है, याद आपको.......
याद है मुझको आज भी वो दिन,
जब संटी आपकी टूटी थी,
जाने कहाँ से कट कर आई,
पतंग जब हमने लूटी थी,
जीवन की तपती दोपहर में याद की बदली छाई है, याद आपको......
स्वाभिमान को सदा सहेजा,
चाहे कितना भी फटे कलेजा,
आपके शब्दों की गरिमा ने यही बात सिखलाई है, याद आपको.........

                                                                                                  गुरु जी को सादर समर्पित.
                                                                                                    आपका आज्ञाकरी शिष्य.                                                                                                  राजेंद्र अवस्थी (कांड)

2 टिप्‍पणियां:

आपकी अमूल्य टिप्पणियों के लिए अग्रिम धन्यवाद....

आपके द्वारा की गई,प्रशंसा या आलोचना मुझे और कुछ अच्छा लिखने के लिए प्रेरित करती है,इस लिए आपके द्वारा की गई प्रशंसा को मै सम्मान देता हूँ,
और आपके द्वारा की गई आलोचनाओं को शिरोधार्य करते हुए, मै मस्तिष्क में संजोता हूँ.....