प्रगति का गीत सुना हमने,
नैतिकता मचल उठी बौराई,
रोक दिया पथ शब्द तिरोहित,
हुए सभी प्रतिमा घबराई,
पहरेदार हैं हर पहलू के,
स्थितियों संग रहे दिखाई,
दिखें सलोनी गाँव की गलियाँ,
पर दिखती विरहन अमराई,
लिखा किसी ने नहीं मरण को,
वरण क्यों करती है तरुणाई,
कलप रहा है ह्रदय प्रकृति का,
नज़र ना आती है अरुणाई,
आस का श्वांस रोके ना रुके,
सृष्टि का सार है या सरिताई,
कालीदास ना हो पाये हम,
चूल्हे भाड़ गई कविताई,
भले ना हो पास मेरे शब्दों का खजाना, ना ही गा सकूँ मै प्रसंशा के गीत, सरलता मेरे साथ, स्मृति मेरी अकेली है, मेरी कलम मेरी सच्चाई बस यही मेरी सहेली है..
मेरा प्यार...
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कालीदास ना हो पाये हम,
जवाब देंहटाएंचूल्हे भाड़ गई कविताई,
कवियों का यहीं हाल हैं आपका......
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